सूर्य नमस्कार-
सूर्य नमस्कार युवक-युवतियों के लिये बहुत ही उपयोगी व्यायाम है। यह व्यायाम अनेक आसनों का मिला-जुला रूप है। यदि व्यक्ति बी.पी. के 6 व्यायाम और सूर्य नमस्कार कर ले तो सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है। सम्पूर्ण शरीर को आरोग्य, शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य नमस्कार को प्रतिदिन 10 से 20 बार यथाशक्ति करना चाहिए। ध्यान रखें- जब सीना नीचे हो तो श्रांस बाहर निकालें और सीना ऊपर उठे तब श्वांस अन्दर लें।
सूर्य नमस्कार की स्थितियां-
(1.) सूर्य की ओर मुख करके सीधे खड़े हों। दोनों हाथ
जोड़कर, अंगूठे सीने से लगा लें और नमस्कार की स्थिति में
खड़े हों। दोनों एडी साथ मिलाकर, मन शांत, आंखें बंद व
ध्यान दोनों आंखों के बीच में हो।
(2.) श्वांस को अन्दर भरते हुए दोनों हाथों को सामने
की ओर से ऊपर उठाते हुए कानों से सटाते हुए पीछे की
ओर ले जायें। हाथों के साथ शरीर को पीछे की ओर
झुकाने का प्रयास करें। नजर आकाश की ओर रहे। पैर
स्थिर रखें।
(3.) श्वांस को बाहर निकालते हुए हाथों को कानों से
सटाते हुए आगे की ओर झुकें, पैर-सीधे, हथेली से जमीन
को स्पर्श करने का प्रयास करें, यदि संभव हो तो सिर को
घुटनों से लगाने का प्रयास करें। झटका न दें।
(4.) श्वांस को अन्दर लेते हुए, बायें पैर को पीछे दूर
तक ले जायें। दाहिना पैर मुड़कर छाती के सामने रहेगा।
हाथों की दोनों हथेली जमीन पर टिकी हुई, गर्दन व सिर
सामने की ओर खिंचा हुआ। दृष्टि आकाश की ओर रहेगी।
(5.) श्वांस बाहर निकालते हुए, दाहिने पैर को बांए पैर की
ओर ले जाते हुए सिर, गर्दन दोनों हाथों के बीच में, नितम्ब व
कमर ऊपर उठे हुए हों, शरीर का पूरा भार, दोनों हथेलियों व पंजों
पर होगा।
(6.) श्वांस-प्रश्वांस सामान्य, शरीर को पृथ्वी के समानांतर लायें,
छाती व घुटने जमीन पर लगाएं परंतु पेट हल्का सा जमीन से ऊपर रहे।
सिर थोड़ा ऊंचा रहे।
(7.) श्वांस अन्दर भरते हुए कोहनियों को सीधा कर दें। छाती आगे
की ओर निकालें । नजर आकाश की ओर रहे। गर्दन पीछे की ओर करें।
(8.) श्वांस भरकर, घुटनों को सीधा करें। सिर को हाथों के
बीच अंदर की ओर लाएं। शरीर को पांचवीं स्थिति में लाएं।
(9.) शरीर को चौथी स्थिति में लाएं, लेकिन इस में दाहिना
पैर पीछे की ओर जायेगा, बांया पैर आगे जायेगा व छाती के सामने
रहेगा।
(10.) शरीर को तीसरी स्थिति में लाएं।
(11.) शरीर को दूसरी स्थिति में लाएं।
(12.) शरीर को प्रथम स्थिति में लाएं! श्वास को अंदर लेवें। अन्त
में हाथ नीचे करके आराम की स्थिति में आ जावें।
(स्वामी रामदेव के अभ्यास पर आधारित)