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सप्त क्रांतियों द्वारा सामाजिक परिवर्तन


  हमारा देश सैकड़ों वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। जिसके कारण यहाँ गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और पिछड़ापन जैसी कई समस्याएँ पनपती रही। आजादी मिलने के बाद भी सरकारें इस दिशा में कोई खास कदम नहीं उठा पाई। राष्ट्र को समर्थ व सशक्त बनाने के लिये युवा पीढ़ी को आगे आना होगा। युग निर्माण योजना के सूत्रधार ने राष्ट्र के समग्र विकास हेतु सात क्रांतियों का सूत्रपात किया। 

1. शिक्षा क्रांति

हमारे देश में इतने स्कूल कालेज खुलने के बावजूद आज शिक्षा का प्रतिशत 70ः से अधिक नहीं पहुँचा। लोगों में शिक्षा के प्रतिजागरुकता पैदा करना होगा। इसके लिये सरकारी प्रयासों के समानान्तर नया शिक्षा तंत्र खड़ा करना होगा। प्रत्येक शिक्षित एक अशिक्षित को पढ़ाने की जिम्मेदारी ले ले। प्रौढ़ पाठशालाएँ चलाई जाये तथा अनौपचारिक शिक्षा केंद्र बनाये जायें। 

   शिक्षा के साथ संस्कार जोड़े जायें तथा मूल्यपरक शिक्षा दी जाए। इसके लिए संस्कार शालाएँ तथा भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा बहुत अच्छा माध्यम है। हमारे शक्तिपीठों के माध्यम से यह कार्य सफलतापूर्वक हो रहा है। 

2. स्वावलम्बनः

आज शिक्षित बेरोजगार बढ़ते जा रहे हैं, प्रायः यह मानसिकता बन गई है कि अच्छी डिग्री प्राप्त करके अच्छी तन्खाह वाली नौकरी मिल जाये। इस चक्कर में हमारे कुटीर उद्योग बंद हो गये। व्यक्ति श्रम से जी चुराने लगा है। खेती, व्यवसाय आदि कोझंझठ समझने लगा है। गांवों से शहरों की ओर पलायन होने लगा है। 

युग निर्माण मिशन ने कुटीर उद्योगों को बढ़ाने तथा प्रशिक्षण देने का कार्य अपने जिम्मे लिया खादी ग्रामोद्योग, गोपालन, साबुन, मोमबत्ती, अगरबत्ती, प्लास्टिक मोल्डींग, स्क्रीन प्रिंटींग आदि उद्योगों में थोड़ी सी पूँजी लगाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा एक स्वालम्बन केन्द्र चलाया जा रहा है, जहाँ प्रशिक्षण के साथ- साथ उत्पादन भी हो रहा है। 

3. नशा उन्मूलनः

   बढ़ती हुई आधुनिकता एवं व्यावसायिक विज्ञापनों ने शराब, तमाखू एवं धुम्रपान को बढ़ावा दिया है। शराब व सिगरेट पीना आजकल सभ्यता की पहचान बन चुके हैं। नशेबाजी ने आज की युवा पीढ़ी को खोखला बना दिया है। हेरोईन तथा चरस जैसे व्यसनों से न केवल आर्थिक समस्याएँ पैदा होती है बल्कि नैतिक पतन होता है। सामाजिक व्यवस्थाएँ बिगड़ती है। युग निर्माण योजना के युवा कार्यकर्ता व्यसनों से मुक्ति दिलाने हेतु रचनात्मक कार्यक्रम चलाते हैं, यज्ञों में व्यसन छोड़ने का संकल्प कराते हैं, व्यसनों से होने वाले दुष्परिणामों को पोस्टरों, नुक्कड़ नाटकों, रैलियों, नारेबाजी आदि के माध्यम से लोंगो कोजागरुक बनाया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर धरना, अनशन तथा प्रदर्शन भी करते हैं। 

4. नारी जागरणः

    यदि आधी जनशक्ति सोयी रही तो देश का समग्र विकास कैसे संभव होगा? नर व नारी एक समान है। दोनों को प्रगति व विकास के लिए समान अवसर मिलने चाहिये। प्रचीनकाल में नारी को मातृ शक्ति के रुप में सम्मान प्राप्त था। परिवारों को नर- रत्नों की खान कहा जाता था। महामानवों को जन्म देने वाली मातृशक्ति को पतित व दलित बनाया गया तभी से देश का अधः पतन शुरू होता चला गया। नारी को रमणी- भोग्या एवं विलासिता का साधन समझा जाने लगा। विज्ञापनों से लेकरटी.वी. चैनलों ने तो अश्लीलता की बाढ़ ला दी है। 

   नारी को अपने स्वाभीमान बचाने एवं अपने अधिकारों के लिये स्वयं आगे आना चाहिये। पुरुषों ने उसे आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिये। इसके लिये वंदनीया शैल जीजी के नेतृत्व में नारी जागरण अभियान चलाया जा रहा है। देश में हजारों महिला मंडलों एवं नारी संगठनों की स्थापना की गई है। गाईड एवं रेंजर बहनों ने इस कार्यक्रम में बढ़- चढ़कर भाग लेना चाहिए। 

5. स्वास्थ्य संवंर्धन क्रांतिः

   अनियमित दिनचर्या, खाने- पीने के तौर तरीके बदलने तथा प्रकृति से दूर होने के कारण आज अधिकांश लोग बिमार तथा कमजोर बने हुए हैं। व्यस्तता के कारण योगासन, व्यायाम, प्राणायाम आदि भी नहीं कर पाते। अन्न, जल तथा वायु काप्रदुषित होना भी बिमारियों को बढ़ाता है। 
   प्रायः लोग स्वास्थ्य के लिये अस्पतालों तथा दवाओं पर निर्भर रहते हैं। यदि प्राकृतिक जीवन जीया जाय। स्वास्थ्य के नियमों का पालन किया जाय तथा नियमित व्यायाम किया जाय तो स्वस्थ व सूखी रहा जा सकता है। स्वास्थ्य क्रांति में इन्हीं बातों के प्रति लोंगो को जागरुक बनाना तथा स्वस्थ रहने के सरल उपायों को प्रचारित करना होगा। एलोपेथी के बजाय एक्यूप्रेशरहोम्योपेथी या आयुर्वेदिक व घरेलु चिकित्सा पद्धति जैसी वैकल्पिक चिकित्सा को अपनाना होगा। 

6. पर्यावरण संरक्षणः

वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के लिये पर्यावरण को बचाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यदि पर्यावरण नहीं बचा तो हमारी धरती नष्ट हो जायेगी, मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। 

   बढ़ते हुए कल कारखानों के धुँए से तथा कार्बन डाईआक्साईड के बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग तथा वायुमण्डल का प्रदूषण बढ़ रहा है। नदियों में कल कारखानों एवं शहरों की गंदगी के कारण जल प्रदूषण बढ़ रहा है। अत्याधिक शोर तथा धमाकों से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। कीट नाशकों के प्रयोग सेखाद्यान दूषित हो रहा है। फलस्वरुप पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया है। वनों तथा वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा का संतुलन बिगड़ रहा है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, बाढ़ आदि इसी के कारण आते हैं। 

इसके लिये बड़े उद्योगों की जगह इको फ्रेण्डली कुटीर उद्योग बढ़ाये जायें, वृक्षारोपण किया जाये, पोलीथीन का प्रयोग बंद किया जाये। रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का प्रयोग करें। पेट्रोल- डीजल की खपत कम की जाये। इन सब कार्यक्रमों के लिये जनमानस बनाने हेतु रैली, बैनर, नारे आदि का प्रयोग करते हुए जन- जागरण के अभियान चलाये जायें। 

7. कुरीति उन्मूलनः

  आज भारतीय समाज में दहेज, खर्चिली शादियाँ, मृत्युभोज, अंधविश्वास तथा रुढ़ियां फैली हुई है। इससे सामाजिक प्रगति अवरुद्ध हो गई है। फैशन एवं दिखावे की प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही है। इससे परिवार भी टूटते जा रहे हैं। दहेज के नाम पर बहु- बेटियों को जिन्दा जला दिया जाता है। 

   धार्मिक परम्पराओं एवं तीर्थ यात्रा आदि के नाम पर करोड़ों रुपये अपव्यय हो जाते हैं। इन सबको सही दिशा देने के लिये युवा शक्ति को आगे आना चाहिये तथा स्वयं का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कुरीतियों को मिटाने का प्रयास करना चाहिए। 

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