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रोवर- रेंजर्स का दायित्व
युवकों में बहुत कुछ करने की सामथ्र्य होती है। उनके लिये असंभव कुछ नहीं होता। उन्हें जिस भी दिशा में नियोजित किया जाये उसमें सफल हो जाते हैं। वर्तमान में युवा शक्ति को सही दिशा नहीं मिल पाने के कारण आंदोलनों- हड़तालों, तोड़- फोड़ जैसे ध्वंस के कार्यों में लगी है। यदि युवा शक्ति रचनात्मक कार्यों में तथा जन- जागरण के कार्यों में जुट जायें तो देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है।
शांतिकुंज एवं क्षेत्र की शाखाओं के तथा दे.सं.वि.वि. के छात्र- छात्राओं सहित सैकड़ों युवक- युवतियाँ इस आन्दोलन से जुड़े हैं। युगनिर्माण रोवर्स- रेंजर्स को देश के नव- निर्माण के कार्यों में लगाने हेतु शांतिकुंज से अनेकों रचनात्मक कार्य प्रारंभ किये गये हैं।
(1) ग्राम प्रबंधन एवं आदर्श ग्राम योजनाः-
वर्षों की गुलामी से हमारा देश बहुत पिछड़ गया था। देश में 80 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है, गांवों का विकास होगा तो देश का विकास होगा। महात्मा गांधी तथा संत विनोबा भावे ने ग्राम विकास पर बहुत जोर दिया था। गांवों में कई प्रकार की समस्याएँ होती है, जिनमें मुख्यतः अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, गंदगी तथा संसाधनों की कमी है। इसके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वावलंबन के लिये प्रचार करना होगा। स्वच्छता एवं श्रमदान के बल पर गांवों का कायाकल्प हो सकता है। गांवों में अभी भी खुले में शौच जाने की परंपरा है। शौचालयों का निर्माण कराना तथा सामूहिक श्रमदान द्वारा गलियों की तथा नालियों की सफाई कराना चाहिए। जहाँ सरकार सड़कें नहीं बना सकती वहाँ सामूहिक श्रमदान करके रास्तों को ठीक किया जा सकता है। उन्नत कृषि, सिंचाई, प्राकृतिक खादों का प्रयोग जैविक खेती जैसे कई प्रयास है जिन्हें स्काउट के सदस्य पूरा कर सकते है। जहाँ सरकारी अस्पताल नहीं है वहाँ वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।
(2) बाल संस्कार शालाएँ-
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विषयों का ज्ञान तो कराया जाता है किंतु संस्कार नहीं दिये जाते। शिक्षा में मूल्यों का समावेश करनाजरुरी है। इसके लिये एक समानान्तर शिक्षा तंत्र विकसित करना होगा। बाल संस्कार शालाओं के माध्यम से बच्चों में संस्कार परंपरा विकसित की जाय। साथ ही प्रौढ़ों का शिक्षित बनाने के लिये प्रौढ़ पाठ शालाएँ भी चलाई जा सकती है।
(3) भारतीय संस्कृति का ज्ञानः-
आज की शिक्षा भौतिक वादी चिंतन को बढ़ावा देती है। पाश्चात्य संस्कृति की ओर हमारी युवा पीढ़ी तेजी से बढ़ती चली जा रही है। यदि हमें भावी पीढ़ी का नव- निर्माण करना है तो उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़ना होगा। उन्हें हमारी सभ्यता व संस्कृति की जानकारी देनी होगी। इसके लिये शांतिकुंज द्वारा संचालित भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में बच्चों को भाग लेने हेतु प्रेरित करना चाहिए। वर्तमान में इस परीक्षा में लगभग 70 लाख से अधिक विद्यार्थी भाग लेते हैं तथा अपनी संस्कृति व संस्कारों से जुड़ते हैं। देश में कक्षा 5 से लेकर कॉलेज स्तर तक के लाखों विद्यार्थियों को संगठित करके ‘‘संस्कृति मंडलों’’ का गठन किया जाता है, जिनके माध्यम से विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलाई जाती है।
(4) आपदा प्रबंधन दलः-
देश के किसी भी भाग में किसी भी तरह की आपदा कभी भी आ सकती है। वर्षा के दिनों में बाढ़ के कारण तबाही मच जाती है। भूकम्प एवं समुद्री तूफानों में लाखों लोग बेघरबार हो जाते हैं, कहीं आग लग जाती है। रेल दुर्घटना, आतंकवादी घटना आदि अवसरों पर राहत एवं बचाव कार्यों की आवश्यकता होती है। स्काउट का तो लक्ष्य ही सेवा है। शांतिकुंज में ‘‘आपदाप्रबंधन प्रकोष्ठ’’ स्थापित है, जहाँ से कुछ ही घंटों में बचाव तथा सहायता दल तैयार होकर घटना स्थल पर पहुँच जाता है। घटना स्थल पर खाद्य सामग्री पहुँचाना, घायलों की देखभाल करना, आवास की व्यवस्था करना तथा पीड़ित लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना। यहाँ इसके लिए विशेष प्रशिक्षण व्यवस्था है। ग्रामीण रोवर्स एवं रेंजर्स को इसके लिये विशेष रुप से प्रशिक्षित करके सेवा कार्यों में भेजा जाता है।
(5) सामूदायिक कार्यकर्ता:-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह अकेला नहीं रह सकता। सबके सहयोग एवं सहकार से ही मनुष्य सुखी रह सकता है। स्काउट के कार्यकर्ताको सामूदायिक कार्यों में हाथ बंटानाचाहिये। ग्रामों में लोग प्रायः सरकारी विभागों से अनभिज्ञ रहते हैं। लोगों को विकास के स्त्रोतों से परिचय कराना, बैंक, कचहरी, पोस्ट ऑफिस , अस्पताल, ग्राम पंचायत, स्वच्छ पेयजल आदि से लोगों को उचित लाभ उठाने हेतु स्काउट कार्यकर्ताओं कोसंपर्कसूत्र की भूमिका निभाना चाहिये।
समाज में फैली कुरीतियों कुप्रथाओं अंधविश्वास तथा मूढ़ मान्यताओं को मिटाने हेतु जनमानस तैयार करना चाहिये। दहेज प्रथा, मृत्युभोज, बलिप्रथा, फैशन परस्ती, नशेबाजी को जड़ से उखाड़ फेंकने में हमारी युवा शक्ति को कुछ करके दिखाना होगा।
इसके लिए स्वयं का आदर्श प्रस्तुत करते हुए अन्यों को भी प्रेरित करना चाहिए। शांतिपूर्वक अहिंसात्मक प्रदर्शन, धरना, अनशन आदि का सहारा भी लिया जा सकता है किन्तु हिंसा एवं तोड़फोड़ से दूर रहना चाहिए। इन्हें गुरुदेव द्वारा तथा लार्ड बेडेन पॉवेल द्वारा बताए गए सफल जीवन के सिद्धांतों पर चलते हुए जीवन लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प
1. हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को
अपने जीवन में उतारेंगे।
2. शरीर को भगवान का मंदिर समझकर आत्मसंयम और नियमितता
द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
3. मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए
स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
4. इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का
सतत् अभ्यास करेंगे।
5. अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित
में अपना हित समझेंगे।
6. मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्योंका
पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
7. समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादूरी को जीवन का
एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
8. चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण
उत्पन्न करेंगे।
9. अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता
को शिरोधार्य करेंगे।
10. मनुष्य की मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं
एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
11. दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद
नहीं।
12. नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
13. संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य- प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव,
ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
14. परंपराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
15. सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन
की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
16. राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे। जाति, लिंग,
भाषा, प्रांत, संप्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न
बरतेंगे।
17. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के
आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों
को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
18. ‘‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’, इस
तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।